अगर सोनिया-राहुल मनमोहन राग न अलापते तो ?




राज वैद्य बतला रहे ,देश लगा क्या रोग
बड़े पदों पर गये , छोटे-छोटे लोग

जी हां
हम सभी बहुत खुश हैं ,भारतीय लोकतंत्र के चुनाव परिणामों से खैर हालात को देखते हुए खुश हुआ जा सकता है
क्यॊंकि जनता के पास इससे बेहतर विकल्प भी नहीं था। लेकिन जैसा अखबार या मीडिया कह रहा है कि यह राहुल एंड कंपनी तथा कथित युवा-ब्रिगेड की जीत है ऐसा न्ही है. यह वोटे भी अत्यधिक महत्वाकांक्षी लोगो को नकारने हेतु वोट है ,जी अडवानी ,माया ,देवगोड़ा,चंद्र्बाबू या जयललिता ,मुलायम सभी तो प्रधान मंत्री की कुर्सी के पीछे भाग रहे थे, यहां मनमोहन की साफ़ सुथरी छवि तथा सोनिया का तथा-कथित कुर्सी त्याग ही एक विकल्प मिला जनता को। अगर कांग्रेस विशेषत: सोनिया-राहुल अगर मनमोहन राग अलापते तो परिणाम कुछ और भी हो सकते थे
लेकिन अमीर-जादों की युवा ब्रिगेड शायद india का ज्ञान-ध्यान तो कर लेगी पर भारत [ देश की अधिकांश जनता का दुख दर्द क्या रहुल के दो दिन के झोपड़ीवास से जाना जा सकता है
तथास्तु
आमीन
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