ये भी क्या जिन्दगी हुई साहिब

घर जला,रोशनी हुई साहिब
ये भी क्या जिन्दगी हुई साहिब

तू नहीं और ही सही साहिब
ये भी क्या आशिकी हुई साहिब

है न मुझको हुनर इबादत का
सर झुका, बन्दगी हुई साहिब

भूलकर खुद को जब चले हम ,तब
आपसे दोस्ती हुई साहिब

खुद से चलकर तो ये नहीं आई
दिल दुखा, शायरी हुई साहिब

जीतकर वो मजा नहीं आया
हारकर जो खुशी हुई साहिब

तुम पे मरकर दिखा दिया हमने
मौत की बानगी हुई साहिब

‘श्याम’ से दोस्ती हुई ऐसी
सब से ही दुश्मनी हुई साहिब

फ़ाइलातुन मफ़ाइलुन फ़ेलुन
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